Monday, December 31, 2007

Jannat


महफिल की सिलवटें आंखो से टपक गयी
बादलों की गर्दिश रगों में दौड़ गयी
खलिश कि मिठास होंटों ने चखी
दुआ के रंगों में दिल रंग गयी
जब रूह कि मुलकात
इरफान, आपके
आवाज़ से हुई
तकदीर के इस तोहफे को हमने नाम दिया
जन्नत-ए-हयात
और तभी फ़रिश्ते कह पड़े
"जिस जहाँ के हिस्से में इतनी खूबसूरत आवाज़ हो
वह जहाँ जन्नत से कम नही
खुश नसीब हैं इंसान
जिनके दिलों के तख्त पे ऐसी आवाज़ राज करे
चाहत हैं हमारी
एक दिन के लिए ही सही
हम फ़रिश्ते इंसान बन जाये
ताकि हम भी पा सके सीना जिसमे इंसान का दिल हो
और हम भी सुन सके धड़कन
जिसमे इरफान की आवाज़ शामिल हो"

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